गजल - मधु शुक्ला
Fri, 10 Mar 2023

आ गया है सखि भ्रमर को गुनगुनाना,
अवतरित जब से हुआ फागुन सुहाना।
खिलखिलाते झूमते रहते कुसुम जब,
प्रीति के नगमे सुनाये तब जमाना।
लालिमा अनुराग की टेसू बिखेरे,
फूल सरसों के सिखायें मुस्कराना।
मन लुभाये फागुनी मौसम कहे यह,
हो सके तो उलझनों को भूल जाना।
ऋतु बसंती जिंदगी में रंग भर दे,
रीति कोई 'मधु' हमें है ढूँढ लाना।
--- मधु शुक्ला, सतना , मध्यप्रदेश