गजल - मधु शुक्ला

 
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प्रीत का शृंगार होना ही था,

इश्क को गुलजार होना ही था ।

हर हृदय को प्रिय लगे अपनापन,

छल कपट बेकार होना ही था ।

स्वास्थ्य पाओ हास्य को अपनाकर,

मान्य यह उपचार होना ही था ।

चाहता मनमीत मन का आँगन,

हर किसी को प्यार होना ही था।

जब मिला हमदर्द 'मधु' को उत्तम,

तब सुखद संसार होना ही था ।

— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश

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