गजल - मधु शुक्ला
Sat, 29 Apr 2023

प्रीत का शृंगार होना ही था,
इश्क को गुलजार होना ही था ।
हर हृदय को प्रिय लगे अपनापन,
छल कपट बेकार होना ही था ।
स्वास्थ्य पाओ हास्य को अपनाकर,
मान्य यह उपचार होना ही था ।
चाहता मनमीत मन का आँगन,
हर किसी को प्यार होना ही था।
जब मिला हमदर्द 'मधु' को उत्तम,
तब सुखद संसार होना ही था ।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश