गजल - मधु शुक्ला

 
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प्यार हिन्दी से जताता क्यों नहीं,
आंग्ल से पीछा छुड़ाता क्यों नहीं।

पा रही सम्मान हिन्दी विश्व में,
फर्ज तू अपना निभाता क्यों नहीं।

राष्ट्र भाषा का मिले दर्जा इसे ,
भावना मन में जगाता क्यों नहीं।

छंद से सज्जित रसों की खान को,
प्राण प्रिय साथी बनाता क्यों नहीं।

बावरे मन लेखनी से प्रेम है यदि,
नाज उसके फिर उठाता क्यों नहीं।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश 
 

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