ग़ज़ल - राजू उपाध्याय
Sep 24, 2024, 23:18 IST
इक महबूब तमन्ना की खातिर,मुठ्ठी भर इश्क़ बिखेरा था।
जब फसल हुई गुलजार, तो उसने बहुत दूर से टेरा था।
खुशगवार थे वो दोनो उस दिन रंग बिरंगे सहरा में,
नई उमंगों से मिल कर, वो सतरंगी हुआ सबेरा था।
खुशबू से महके खेतों में ,कुछ अपशकुनों ने दस्तक दे दी,
खार उगे कुछ तभी अचानक,खारों ने गुलशन घेरा था।
तब उलझ गये थे हालातों में, सोनपंख से वो उड़ते पंछी,
सपन बन गए भुतहा खंडहर,फिर उनका वहीं बसेरा था।
हश्र मातमी यह देखा,तो टूटा था हजार बार दिल मेरा,
इश्क़ आशिकी के उस मंजर पर, फैला घोर अँधेरा था।
कुछ रोते कुछ खोते बीता ,फिर भी सफर सुहाना था,
ज़िन्दा थे वो दोनों मर कर,अब रूह में उनका डेरा था।
सिर्फ एक इंच मुस्कान मिली थी दीवानों को महफ़िल में,
याखुदा ! क्या यही इश्क़ था, दिल बोला "वो" मेरा था।
- राजू उपाध्याय, एटा , उत्तर प्रदेश