ग़ज़ल - रीता गुलाटी
May 8, 2024, 22:00 IST
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जनाजा उठा है तुम्हारे ही घर से,
चलो आज निकले हैं तेरे शहर से।
सुनाती रही हूँ मैं नगमों को घर से,
चलो आज छेड़े ये सरगम इधर से।
पड़ा आज महफिल हमे गुनगुनाना,
सराहे सभी गीत मीठी नजर से।
निकल वो पड़े हैं,बने शान महफिल,
अभी तक न आई ख़बर कुछ उधर से।
भलें जख्म दिल के दिखाना मना है,
बचोगे कहाँ तक मुहब्बत डगर से।
नही पास मेरे लगे कुछ कमी है,
दिया प्यार तुमको समझ हमसफर से।
- रीता गुलाटी ऋतंभरा, चण्डीगढ़