ग़ज़ल - रीता गुलाटी

 
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आज छाया आँख मे अब प्यार है,
वक्त  की नीयत बड़ी बेकार है।

प्रेम आँखो से जताता वो नही,
ढूँढता दुनिया मे वो परिवार है।

जग हमारा खून का प्यासा हुआ,
यूँ लगे गम डूबता संसार है।

खुद अकेली जी रही थी कब से मैं,
दर्द मेरा वो सुनेगा जो करतार है।

आ जरा कर ले पिया दीदार *ऋतु,
प्यार करती आपसे हर बार है।
- रीता गुलाटी..ऋतंभरा, चण्डीगढ़ 
 

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