ग़ज़ल - रीता गुलाटी
Jun 7, 2024, 22:26 IST

आज बैठे वो शामियाने मे,
वो लगे गीत को सुनाने मे।
भूख कैसी हुई जमाने मे,
रोज बिकती है जो निवाले मे।
चुन लिया आज हमने नेता भी,
वो लगे देश को बचाने मे।
भूल बैठे वो याद आते हैं,
जो लगे अब हमें लुभाने मे।
लोग कैसे जो घर जलाते हैं,
पूछने पर जुटे सताने मे।
चाह बाकी रही न जीने की,
ख्याब ही मर गये कमाने मे।
जेब होती नही कफन मे *ऋतु,
लोग दौलत लगे बचाने मे।
- रीता गुलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़