ग़ज़ल - रीता गुलाटी
Sep 2, 2024, 22:18 IST
रास्ता मुशकिल भले हो,आदमी डरता नही,
दर्द सहता है वो सारे, हार से झुकता नही।
दर्द हमने वो सहे जो वक्त ने हमको दिये,
फिर बने कुंदन जहा्ं मे रोक जग पाया नही।
मुफलिसी से लोग जीते दर्द बांटे कौन हैं,.
हाल उनका जो भी दिखता आंख से हटता नही।
लोग लड़ते ही रहे है बेवजह ही धर्म पर.
क्या भला होता है उससे जानते मुद्दा नही।
बांटना चाहे शजर को,परवरिश समझे नही.
ख्याब देखा जो शजर ने,हो रहा पूरा नही।
हो गये मशरूफ हम भी फर्ज की राहो मे अब.
फर्ज से की है मुहब्बत फायदा हो या नही।
जिन्दगी का *ऋतु सफर भी अब कहां इतना सरल.
ठोकरे खाकर सम्भलना, डर के तू रोना नही।
- रीता गुलाटी ऋतंभरा, चण्डीगढ़