ग़ज़ल -  रीता गुलाटी

 
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पैर सूने से लगे हैं बिन महावर के सिवा,
खूबसूरत फिर लगे दुल्हन भी जेवर के सिवा।

छोड़ कर जायें किधर, माँ तेरे घर  के सिवा,
चैन भी फिर क्या मिलेगा,छोड़कर दर के सिवा।

आज सेके रोटियां नेता सियासत से भरी,
अब सियासत कुछ नही है खून खंजर के सिवा।

नाज हमको था बड़ा इस देश की बेटी हैं हम,
देश सेवा है खजाना,कीमती बिस्तर के सिवा।

अब मिले मुझको सुकूँ दीदार जब तेरा करूँ,
रूह को मिलता सुकूँ देखूँ नजर भर के सिवा।
- रीता गुलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़
 

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