ग़ज़ल - रीता गुलाटी

 
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अक्स तेरा अब निगाहों मे रहा,
प्यार भरता रंग सपनोँ का रहा।

रह न पायी बिन तेरे सजना मैं अब,
प्यार तेरा सात जन्मों में रहा।

यार देते आज तुमको हम दुआ,
फिर दुआओं से तू खबरों मे रहा।

तू रखे है क्यों जहर भीतर बड़ा,
इतना पाया जहर साँपो मे रहा।

हम करेंगे अब गरीबी दूर भी,
बस यही वादा चुनावों मे रहा।

कुछ की क़िस्मत में आज़ादी लिखी, 
कोई परिंदे  सिर्फ  जालों  में रहा ।

कितने नेता हैं हमारे देश मे, 
नाम जिनके बस घुटालों में रहे।

शेर मेरे हैं बोहोत मुद्दत से बस, 
जो किताबों में रिसालों में रहे।

हो गयी पागल भले *ऋतु प्यार मे,
ध्यान लेकिन कुछ  सवालों मे रहा।
- रीता गुलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़
 

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