ग़ज़ल - ऋतु गुलाटी 

 
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यारा अब दीवाना कर लो,
नही कोई बहाना कर लो।

उड़ते रहते बीच गगन में,
परिंदा बनो ठिकाना कर लो।

 यूँ ना छेडो इन जख्मो को,
पहले जख्म सुखाना कर लो।

आओ कर ले याराना अब,
दिल में आना जाना कर लो।

छेड़े हैं अब गीत पुराने,
धुन से गीत बनाना कर लो।

हो चुका गुनाहों से घिरना,
काम नेकी गिनाना कर लो।

आते हो तुम ख्याबो मे अब,
चिलमन मे छुप जाना कर लो।

हो जाये तन मे बीमारी,
फिर तो दवा चटाना कर लो।
 - ऋतु गुलाटी ऋतंभरा, मोहाली, पंजाब 
 

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