गजल - ऋतु गुलाटी 

 
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प्यार हमसे मगर नही होता,
दूर रहकर बसर नही होता।

यार मेरे हमें सताते हो, 
हमसे इतना सफर नही होता।

याद तेरी में हम न तड़फे हो,
यार ऐसा पहर नही होता।

आग दिल में लगा दी है तूने,
यार हमसे बसर नही होता।

रात दिन यार तड़फते रहते,
हाय तुम पर असर नही होता।

चाँद खोया है आज बदली में,
फिर मुकम्मल शहर नही होता

दूर हमसे अजी नही जाना,
हाय अब तो सबर नही होता।
-रीतागुलाटी ऋतंभरा
चंडीगढ़ मोहाली
 

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