ग़ज़ल - सम्पदा ठाकुर
Feb 1, 2024, 21:56 IST
मदहोश इन नयन में नजाकत नहीं हुई,
शायद अभी किसी से मुहब्बत नहीं हुई।
कचनार सी कली ये जवानी निहारती,
कोमल कपोल यार शरारत नहीं हुई।
कंचन कमान देह सजाती है सादगी,
पावन निहार प्यार हिफाजत नहीं हुई।
वो चाँद देखता है सितारों को रात मे,
बदली हुई फिजाएं कयामत नहीं हुई।
हर रोज़ मिल रही अब अहसास सम्पदा,
खिड़की खुली सदा से बगावत नहीं हुई।
- सम्पदा ठाकुर, जमशेदपुर