ग़ज़ल - शिप्रा सैनी 

 
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खुश हैं अगन को पानी करके।
और  चुनर  को   धानी  करके।

दिल को आखिर कितना तोडें,
सुख  की  नित दरबानी करके।

हम फिर भी तो मुखर हैं पर वो,
चुप    है , बदजुबानी    करके।

जी ले,   अंधियारे  से  पहले,
शामें   और   सुहानी   करके।

चाहत कुछ करने की छोड़े,
पागल   या   दीवानी  करके।
✍शिप्रा सैनी मौर्या, जमशेदपुर 
 

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