ग़ज़ल - विनोद निराश 

 
pic

कटता रहा उम्र का सफर तन्हा, 
भीड़ में होती रही बसर तन्हा।

उनसे ही वाबस्ता रहा ता-उम्र,  
जिनकी मिली हर खबर तन्हा। 

कभी तवज्जो न मिली मुझको, 
मुहब्बत रही इस कदर तन्हा। 

हर वक़्त रहे आशना बे-खबर से, 
दूर तलक देखा तो नज़र तन्हा। 

रात के सन्नाटे में झिंगुर चीखें, 
रात कैसे करे कोई गुजर तन्हा। 

हो गए आशना जब बे-आशना, 
अब निराश जाए किधर तन्हा। 
- विनोद निराश , देहरादून 
वाबस्ता - संबद्ध / संबंधी / जुड़ा हुआ  
आशना - परिचित / अपने / प्रेमी 
बे-आशना – अपरिचित /  पराये 
 

Share this story