ग़ज़ल - विनोद निराश 

 
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बता तेरी क्या रजा है,
मुझ से क्यूँ खफा है।  

दिल  मुन्तज़िर तेरा,
पर तुझे हुआ क्या है। 

गरूर वाज़िब न इतना,
इंसां है न कोई खुदा है।    

न देख तंग नज़र से, 
अपनी भी तो हवा है। 

गर भूल हुई तो क्या, 
इश्क़ भी इक खता है। 

बेशक फेर ले नज़रे,
हमारे भी मेहरबां है। 

तू आये न आये पर, 
निराश अभी रुका है। 
- विनोद निराश, देहरादून
 

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