गूँजे अनहद नाद तुम्हारा - मीनू कौशिक

 
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है प्रार्थना हे ईश! कि,
मन का सभी कल्मष मिटे।
हवाएँ हुई प्रतिकूल जो,
अनुकूल हो संशय हटे।।

अंतस में एक हलचल मची,
भावों का ज्वार उठ रहा।
संवेदनाओं के विवर में ,
मन का मयूर घुट रहा ।।
आए लहर करुणामयी,
उद्वेग के बादल छटे ।।
हवाएँ हुई................।।

जो हृदय ने थामकर,
रखा बडे़ जतन से था।
दिल के नाजुक दर्पण में,
कोई जडे़ रतन-सा था ।।
कानों में शब्द गूँजते,
शब्दों की प्रतिध्वनि घटे ।।
हवाएँ हुई .............. ... ।।

हो तुम्हारा अक्स दिल में,
नेत्रों में प्रतिछाया तेरी।
गूँजे अनहद नाद तुम्हारा,
मन में तेरी प्रीत भेरी ।।
हो अवतरण तुम्हारा दिल में,
तू ही तू बस जीभ रटे ।।
हवाएँ हुई प्रतिकूल जो,
अनुकूल हों संशय  हटे ।।
- मीनू कौशिक, दिल्ली
 

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