मन की प्रसन्नता - सुनील गुप्ता 

pic

 (1)"मन ", मन ही हमारा सच्चा मित्र
               करें ना कभी इससे दुश्मनी  !
               ये भगाए तन को सदा सर्वत्र....,
               बनाए रखें इसपे पूरी निगरानी !!
(2)"की ", कीमत मन की यहां पे समझें
              इसे लगाए रखें कामों में व्यस्त  !
              इधर उधर की बातों में ना उलझे....,
              सदा रहें अपनी मस्ती में मस्त !!
(3)"प्रसन्नता ", प्रसन्नता में बने रहें यहां 
               करें स्वयं की सदा परवाह  !
               काम करें जो मन को सुभाए......,
               रखें ना कभी औरों से चाह !!
(4)"मन की प्रसन्नता ", पे कार्य करें
              काम क्रोध मोह से बचें  !
              सदा राग द्वेष से दूर रहकर....,
              अपने 'स्व', के आनंद में बने रहें  !!
(5)"मन की प्रसन्नता ", नित बढ़ाएं 
           और रखें नहीं किसी से अपेक्षा  !
           पकड़ चलें अपनी राह पे......,
           करें नहीं यहां किसी की उपेक्षा  !!
- सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान

Share this story