हिंदी - कर्नल प्रवीण त्रिपाठी

 
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भारत भाषा भाल की, हिंदी अनुपम शान।
नाता सब से जोड़ती, बिना किसी अभिमान।
बिना किसी अभिमान, प्रगति नित करती जाये।
स्वतः चला अभियान, विश्व में धाक जमाये।
हिंदी बड़ी महान, गढ़े अभिनव परिभाषा।
दिलवाती पहचान, जगत में भारत भाषा।।1

नूतन नवल प्रयोग से, पाती है विस्तार।
हर कोने में विश्व के, हिंदी करे प्रसार।
हिंदी करे प्रसार, समाहित सब कुछ करती।
आता नया निखार, कलेवर नये बदलती।
सबसे है संबंध, नव्य या भले पुरतान।
हिंदी की शुभ गंध, भाव भरती नित नूतन।।2

लिखते लाखों लोग हैं, बोले कई करोड़।
वसुधा पर विस्तार का, इसका आज न तोड़।
इसका आज न तोड़, सहज है लिखना-पढ़ना।
लेती सबको जोड़, लक्ष्य है आगे बढ़ना।
हिंदी भाषी आज, विश्व भर में हैं दिखते।
हिंदी करती राज, सभी जब पढ़ते-लिखते।।3
- कर्नल प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, उत्तर प्रदेश
 

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