हिंदी ग़ज़ल - विनोद निराश

 
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ये दिन मधुरिम आस लिए है,
रिश्तों में नई मिठास लिए है। 

मौसमें-इश्क़ परवान चढ़ा है,
भ्रमर भी मधु प्यास लिए है। 

ऐसे में गर तुम जो आ जाते,
मन विरह भाव ख़ास लिए है। 

नव कोंपल पे फैली मादकता,  
मदन रति लीला रास लिए है। 

आया प्रेमपर्व लेके साथ बसंत,
हर पवन झरोखा सुवास लिए है। 

सिर्फ तेरी आमाद के ख्याल से, 
निराश मन मधुमास लिए है। 
विनोद निराश , देहरादून
 

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