हिन्दुस्तान हमारा - अनिरुद्ध कुमार
Sun, 7 May 2023

कुर्सी के बा खींचातानी, केहू कहाँ सहारा,
सदा गरीबी छाती पीटे, देखीं रोज नजारा।
कहाँ केहू गैर के पूछे, चिंतित बा जग सारा,
हर केहू अपने में बाझल, चाहे रोज उबारा।
हाय तौबा मचलबा सगरे, तन पे शोभे खादी,
बोलीं पइसा के ना चाहे, बेमारी मीयादी।
होता वे मतलब के खेती, भेदभाव के नारा,
छाती पीटे रोज गरीबी, जनमत के बरबादी।
दयावान सोंची ना केबा, लूटपाट के आँधी,
बोलीं कहाँ जाये गरीबी, होजाला उन्मादी।
मय नेता के बा दरमाहा, भूखा सोंची कादी,
बचवा पढ़ बेकारी झेले, उलटे पाठ पढ़ा दीं।
धनबल, बाहुबल के आगे गरीबी बेसहारा,
लोकतंत्र के रटना रोजे, केबा कहीं सहारा।
उलटा, सीधा बात करेले जनता के रखवारा।
गरीबी तिरंगा ले बोले, हिन्दुस्तान हमारा।
- अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड