कैसे देश सौंप दें - भूपेन्द्र राघव

कैसे अपना देश सौंप दें, उन नीयत के नंगो को
बेध रहीं हैं गिद्ध निगाहें, माँ बहनों के अंगो को
अस्मत जिनके लिए हमेशा
केवल एक खिलौना है....
चेहरों पर चेहरों की परतें
हर एक कृत्य घिनौना है....
कुर्सी के लोलुप हत्यारे
भड़काते हैं दंगों को
कैसे अपना ....... ....... ...... ...... .... ....... .....
बेध रहीं हैं गिद्ध निगाहें, माँ बहनों के अंगो को
जनता में लेकर आते हैं
कौमी, धर्म तुलाओं को....
धमकाते देखा है अक्सर
मजलूमों, अबलाओं को....
कार काफ़िला लेकर चलते
मय-बंदूक दबंगों को
कैसे अपना ....... ....... ...... ...... .... ....... .....
बेध रहीं हैं गिद्ध निगाहें, माँ बहनों के अंगो को
ये अजगर जितने दोषी हैं
जनता उतनी दोषी है....
निगल रहे हैं मार कुंडली
फिर भी क्यूँ खामोशी है....
अरे संगठित होकर मारो
जूते इन भिखमंगों को
कैसे अपना ....... ....... ...... ...... .... ....... .....
बेध रहीं हैं गिद्ध निगाहें, माँ बहनों के अंगो को
लोकतंत्र है, मत-मंत्रों से
मिलकर ऐसा वार करो....
राजनीति के रणस्थल से
सात समंदर पार करो....
कभी दरिंदे छू नहीं पाए
भारत-शान तिरंगों को
कैसे अपना ....... ....... ...... ...... .... ....... .....
बेध रहीं हैं गिद्ध निगाहें, माँ बहनों के अंगो को
- भूपेन्द्र राघव, खुर्जा , उत्तर प्रदेश