कैसे मिले प्रसन्नता - पवन वर्मा

 
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utkarshexpress.com - संसार में आजकल ऐसे मनुष्यों की संख्या बहुत अधिक है, जो प्राय: अपने किसी-न-किसी दुख का रोना रोया करते हैं। कितने ही लोगों की बातों से तो ऐसा जान पड़ता है कि संसार में उनसे बढ़कर दुखी कोई नहीं है। ऐसे लोग वास्तव में अपनी ही अवस्था पर ध्यान दिया करते हैं, दूसरों की हालत पर कभी विचार नहीं करते। दूसरी बात यह है कि वे भूल तो स्वयं करते हैं, पर अपने दुखों का कारण दूसरों पर डालते हैं। कभी हम दैव को दोष देते हैं कि भगवान हम पर अप्रसन्न हैं और हमको तरह-तरह के दुख दे रहे हैं।
 कभी हम किसी व्यक्ति विशेष को दोषी बतलाते हैं कि वही हमारा विरोध करके हमको हानि पहुंचा रहा है। इस प्रकार के विचार वास्तव में हमारे मन के भ्रम ही होते हैं। यदि हम वास्तव में  दुखों से छुटकारा पाना चाहते हैं तो हमको सबसे पहले यह विचार अपने मन से निकाल देना चाहिए कि कोई वस्तु या व्यक्ति हमारे दुख का कारण है। हमको भली प्रकार यह समझ लेना चाहिए कि अपने कर्मों के लिए हमारे स्वयं के सिवा कोई और जवाबदार नहीं है और हम जो कुछ दुख या सुख पाते हैं, वह अपने कर्मों का ही परिणाम होता है।
प्रत्येक मनुष्य का जीवन सर्वथा उसके अधीन है। जो कुछ दुख या सुख हमें प्राप्त होते हैं, उनमें कार्य-कारण का एक विशेष नियम रहता है। दुखों के कारण हम स्वयं होते हैं। अगर मनुष्य जान-बूझकर वहम, अज्ञान, भूल, अंधकार और दुख की  कोठरी में समस्त जीवन बैठा रहे और दुख की शिकायत करता रहे तो क्या उसका दुख दूर हो जाएगा?
 वास्तव में विचार किया जाए तो सुख के लिए अपने चित्त की शांति और एकाग्रता की ही आवश्यकता है, दूसरी वस्तुओं का सहारा ढूंढने की आवश्यकता नहीं। एक मनुष्य ऐसा होता है कि जहां जाता है, वहां उसे आनंद ही मिलता है। प्रत्येक वस्तु उसे सुख देने वाली प्रतीत होती है। प्रत्येक परिस्थिति उसको अनुकूल मालूम होती है। दूसरा मनुष्य ऐसा होता है, जिसे प्रत्येक वस्तु में बुराई ही नजर आती है। प्रत्येक वस्तु या मनुष्य के संपर्क में आकर वह खिन्न हो जाता है। प्रत्येक की शिकायत करता है। उसको कहीं-किसी वस्तु में आनंद प्राप्त नहीं होता। वह जगत को न रहने योग्य स्थान मानता है।
आप ऐसे भी अनेक मनुष्य पाएंगे, जिनको सुख के सभी साधन प्राप्त हैं, पर जो अपने स्वभाव के कारण या अपने मन से झूठे-सच्चे कारण उत्पन्न करके अपने को दुखी रखते हैें। हमने बड़े-बड़े वैभवशालियों को भीतर से ऐसा दुखी और चिंताग्रस्त देखा है कि उनकी अपेक्षा कुछ रुपयों की मजदूरी करने वाला गरीब आदमी भी सुखी जान पड़ता है।
ऐसे लोगों को किसी पर विश्वास ही नहीं होता। वे अपने खास स्त्री, पुत्र, संबंधी आदि पर भी विश्वास नहीं कर पाते और इस प्रकार सब कुछ होते हुए भी संसार में एक निस्सहाय व्यक्ति की भांति जीवन व्यतीत करते हैं।
अब विचार कीजिए कि ऐसी अवस्था क्यों है? इसका कारण कोई अन्य नहीं वरन हमारी ही योग्यता या अयोग्यता होती है। संसार में रहकर तरह-तरह के अभाव, विघ्न-बाधा, आधि-व्याधि के आक्रमण से बचना संभव नहीं है, पर उस परिस्थिति में भी शांत और धैर्ययुक्त रहना हमारे हाथ में है।
बाहरी वस्तुओं के आधार पर सुख की आशा रखने वाला अवश्य धोखा खाता है। इसलिए सुखी रहना चाहते हो तो अपने आप पर, अपने मन पर अधिकार रखना सीखो। परेशानियां तो  जीवन में कम या ज्यादा आएंगी ही। उनसे जूझना और शांति एवं धैर्य के साथ उन परिस्थितियों से तालमेल बैठाना चाहिए।
राम और कृष्ण जैसी अवतारी सत्ताओं के जीवन में कितने कष्ट आए? इस पर विचार करना चाहिए। प्रसन्न रहने के दो ही उपाय हैं आवश्यकताओं में कमी और परिस्थितियों में तालमेल।  (विभूति फीचर्स)

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