मैं एक लड़की हूँ - झरना माथुर 

 
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जोर से न हँसू , हल्के बोलू, घर से नहीं निकलू,
घर के काम मै सीखू, क्योंकि  मैं एक लड़की हूं।

सादा रूप है मेरा और, 
रंग भी है काला,
फिर दहेज भी ज्यादा, 
क्योंकि मैं एक लड़की हूँ।

विवाह के बाद बच्चों,
बड़ों के लिए तैयार,
सबकी मैं जिम्मेदार,
क्योंकि मैं एक लड़की हूं।

सबकी सुनू मैं कुछ न कहूं,
दूसरे घर की हूं 
खुली जुबां बातें चार, 
क्योंकि मैं एक लड़की हूं।

मायके में जन्म पली-बढ़ी,
मगर रही पराई,
ससुराल में भी पराई, 
क्योंकि मैं एक लड़की हूं।

न पीहर हुआ अपना, 
नहीं अपनी हुई ससुराल, 
ढूंढू  में अपना घर,
क्योंकि मैं एक लड़की हूं।
- झरना माथुर, देहरादून , उत्तराखंड
 

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