राजा हो तो राम सा - हरि राम यादव
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राजा हो तो राम सा,
हो अवध सा राज्य।
न्याय का हो शासन ,
हो पद लिप्सा त्याज्य।।
नागरिक हित सर्वोपरि हो,
न हो अपने पराये का भेद।
ऊंच नीच की बात न हो,
हो जहां केवल श्रेष्ठ स्वेद।।
कथनी-करनी एक हो,
न हो इधर उधर की बात।
राम राज्य की अवधारणा,
तभी सफल हो तात।।
निंदा स्तुति में एक सम,
मन न उपजे दुर्भाव ।
निंदा की बातें सुनकर,
न आये मन में ताव।।
अपने बचन के लाज हित,
चाहे पड़े चुकाना जो मोल।
पीछे कदम न हटें कभी ,
यही राम राज्य की तौल ।।
राम राज्य की परिकल्पना,
जनहित व्यापक आधार।
वह शासन राम राज्य नहीं,
जिसका परहित न व्यवहार।।
प्रजातंत्र के मूल में,
राम राज्य का भाव।
नदी उतरने के लिए,
चाहिए केवट की नाव।।
समदर्शी शासक बिना,
हरी चले नहीं देश।
उठा पटक रोज हो,
दिन दिन बढ़े क्लेश ।।
- हरी राम यादव, अयोध्या, उत्तर प्रदेश