तुम मिले तो - यशोदा नैलवाल
तुम नहीं थे तो लगा कुछ स्वर अधूरे रह गए थे।
तुम मिले तो आज मन का व्याकरण पूरा हुआ है ।।
दृश्य थे अनुरूप, विचरण जो किए थे नयन पथ पर,
शब्द लेकिन राह की अड़चन बने थे।
कल्पना पग पग प्रवाहित हो रही थी लक्ष्य पाने,
मौन लेकिन भाव का पूजन बने थे।
बिन तुम्हारे भाव की पुस्तक अधूरी रह गई थी।
एक पग से प्रेम पथ का आवरण पूरा हुआ है।।
आस में पहले मिलन की हर नगर दीपक जलाए,
पर उजाले सब प्रखर तो हो न पाए।
कर दिए सब अश्रु अर्पित चिर-प्रतीक्षा में तुम्हारी,
वेदना के स्वर मुखर तो हो न पाए।
गीत जबसे मन नयन से अश्रु बनके झर रहे हैं।
बस तभी से स्वप्न का शुभ जागरण पूरा हुआ है।।
देहरी की देह जाने आगमन की पग छुवन को
दृष्टियां जैसे सुहागन हो गई हैं।
द्वार की सांकल निरन्तर बज रही हैं याचना की,
हिचकियां आतिथ्य वन्दन हो गई हैं।
कण्ठ पर आकर विराजे जब तुम्हारे कुछ वचन ।
गीत गाकर तब कथा का उद्धरण पूरा हुआ है।।
- यशोदा नैलवाल, दिल्ली