सूरज का साक्षात्कार - हरी राम
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utkarshexpress.com - पिछले कुछ दिनों से जल, थल और नभ में सूरज की तपिश का तीव्र सिलसिला जारी है। पृथ्वी के थलचर, जलचर और नभचर प्राणियों में हाहाकार मचा हुआ है। जिधर देखो उधर गर्मी से परेशान मनुष्य आपस में एक ही बात कर रहे हैं - भइया बहुत गर्मी है, ऐसी गर्मी पहले कभी नहीं पड़ी। जीव - जन्तु, पशु - पक्षी प्यास और गर्मी के मारे परेशान होकर छाया और पानी की खोज में इधर उधर भाग रहे हैं। कहीं कहीं पर तो बंदर, तोते और कबूतर पेड़ों से बेहोश होकर नीचे गिर पड़ रहे हैं। छुट्टा जानवर और नीलगाय तो घरों के आगे आकर पानी के लिए मनुष्य की ओर याचना भरी दृष्टि से देख रहे हैं। बेचारे कुत्तों का बुरा हाल है। दिन भर जीभ निकाले गंदी नालियों के पानी में लोटकर अपनी गर्मी शांत कर रह हैं। मई के आखिरी कुछ दिनों में तो प्रमुख नदियों के श्मशान घाटों पर मानव शवों की लाइन लग गई थी और जून में तेज गर्मी से मरने वाले लोगों का सिलसिला जारी है। उत्तर प्रदेश सरकार ने तो गर्मी के प्रकोप से जान गंवाने वाले लोगों के परिजनों को 4 लाख की अनुदान राशि देने की घोषणा भी कर दी है।
गर्मी के आतप से परेशान प्राणियों को देखकर मुझसे न रहा गया। मैंने सोचा कि क्यों न गर्मी के उत्पादक सूरज से मिलकर इसके बारे में पूछा जाए कि आखिर वह ऐसा क्यों कर रहे हैं? ऐसा करने के पीछे उनकी मंशा क्या है? सूरज एक प्रतिष्ठित व्यक्तित्व हैं, उनसे मिलना इतना आसान भी नहीं है। यह बात अलग है कि जब मैं दैनिक अभ्यास के लिए खेल के मैदान में जाता था तो वह मुझसे रोज मिलते थे । लेकिन मेरा स्वास्थ्य खराब होने के बाद हमारी उनसे मुलाकात नहीं हो पायी है। अब तो उनसे मिलने के लिए पहले उनसे बात करनी होगी। किन्तु उनसे बात करना आसान काम नहीं है क्योंकि पृथ्वी से सूरज की दूरी लगभग 14, 96, 00, 000 किलोमीटर है और पृथ्वी की ओर तीव्र गति से आने वाले प्रकाश को यहां तक पहुंचने में 8.20 मिनट का समय लगता है।
आजकल मीडिया में चर्चित लोगों के साक्षात्कार का खूब चलन है। मेरे दिमाग में आया कि क्यों न सूरज जैसे प्रतिभाशाली व्यक्तित्व का साक्षात्कार किया जाए। सूरज का साक्षात्कार करने से मेरा व्यक्तिगत फायदा भी है। एक दिन में ही मेरा नाम चमक जायेगा। जब सोशल मीडिया में सूरज का धमाकेदार साक्षात्कार आयेगा तब फालोवर की संख्या अरबों में पहुंच जाएगी। लेकिन साक्षात्कार के लिए पहले सूरज से सम्पर्क करना होगा। मैं अपने घर में बिना किसी को कुछ बताए हुए घर से बाहर निकला और उस खेल के मैदान की ओर चल पड़ा जहां उनसे पहले मुलाकात होती थी। आसपास देखा तो वहां बहुमंजिली इमारतों के आसपास कोई आम, महुआ, नीम, पीपल, बरगद या जामुन का पेड़ नहीं दिखाई पड़ा। सड़क से कुछ दूर हटकर एक मदार का पेड़ नजर आया । मैं उसी के नीचे जाकर सूरज से संपर्क स्थापित करने के लिए बैठ गया। काफी कोशिश के बाद लगभग 15 मिनट बाद मेरे मस्तिष्क की तरंगें सूरज से मिलने में सफल हो गयीं। तरंगों के मिलते ही मैंने सूरज का अभिवादन किया। मुझे कई महीने बाद देखते ही वह मुस्कराये और कहा कि आपके बारे में मुझे पता चल गया था। मेरी किरणों ने मुझे सब बता दिया था। अब आप कैसे हैं? मैंने कहा मैं अब ठीक हूं। फिर उन्होंने कहा कि मेरे पास आपका आने का क्या प्रयोजन है? कोई लेखक, साहित्यकार और पत्रकार बिना किसी विशेष उद्देश्य के कम ही मिलते जाते हैं। बात सही थी, मैंने हां में सिर हिलाया।
मैंने कहा कि आजकल आपकी तेज धूप से पृथ्वी पर हाहाकार मचा हुआ है। हर जीव जन्तु परेशान है और आप रोज अपनी धूप में इजाफा करते जा रहे हैं। हमारे देश में कुछ लोग दबी जुबान से कह रहे हैं कि आप पैसे वालों से मिलकर अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करके उनका फायदा करवा रहे हैं। आप गरीबों और जीव जंतुओं को सता रहे हैं। आपकी निष्ठुरता के चलते बेघर लोगों की जान जा रही है। आपसे दोस्ती के कारण आपके बारे में यह सब बातें सुनकर मुझे बहुत खराब लगा। मैंने सोचा कि आपसे मिलकर आपका एक साक्षात्कार कर लूं और पृथ्वी वासियों के सामने आपकी बात को रखूं ताकि लोगों के बीच कोई भ्रम न रह जाए।
साक्षात्कार के लिए सूरज सहर्ष तैयार हो गये और बोले कि ऐसी कोई बात नहीं है। उन्होंने कहा कि आप जो भी पूंछना है पूंछिए। मैंने कहा कि साक्षात्कार ऐसे नहीं होता। आप मुझे बताइए कि मैं आपको दुबारा कब मिलूं।आप मुझे मिलने का समय दीजिए । उन्होंने कहा कि अभी साक्षात्कार कर लीजिए। आप जो पूंछेगें मैं आपके प्रश्न का उत्तर दूंगा। मैंने कहा महोदय आप हमें मिलने का समय दे दीजिए। मैं भी साक्षात्कार के लिए सज-धज कर आऊंगा और आप भी सज-धज कर आइयेगा। मैं आपको अपने सवाल दे देता हूं। आप जबाब तैयार करके रखिएगा, ताकि आपकी गरिमा बनी रहे। मेरी इस बात पर मेरी ओर देखकर सूरज मुस्कराये। उन्होंने कहा - ऐसा क्यों? पहले तो ऐसा नहीं होता था। पहले तो साक्षात्कार करने वाले इतने टेढ़े मेढे और उलझाऊ सवाल करते थे कि दिन में ही अंधेरा नजर आने लगता था। क्या आज पत्रकारिता में यह सब होने लगा है? यदि ऐसा हो रहा है तो बहुत ग़लत बात है! यह तो जनता के साथ धोखा है। ऐसा साक्षात्कार कोई साक्षात्कार थोड़े है। आप कल सुबह 8 बजे वहीं खेल के मैदान में मिलिए। मुझे संजने संवरने का कोई शौक नहीं है। मैं जैसा भी हूं ठीक हूं। मेरी पहचान मेरा अहर्निशि संघर्ष है। मैंने अभिवादन करते हुए सूरज से विदा लिया। 15 मिनट बाद मेरी चेतना वापस आ गयी और मैं मदार के पेड़ के नीचे से अपने घर की ओर चल पड़ा।
सूरज से मिलने की उत्कंठा में रात जैसे तैसे कटी। सुबह जल्दी उठकर तैयार हुआ और खेल के मैदान की ओर चल पड़ा। बिना एक मिनट की देर किए पूर्व निर्धारित समय पर सूरज खेल के मैदान पर आ पहुंचे। मैंने उनके पास जाकर अभिवादन किया और मदार के पेड़ की ओर चलने का इशारा किया। पेड़ के नीचे पहुंचकर हमने अपना अपना स्थान ग्रहण किया। थोड़ी सी औपचारिक बातों के बाद प्रश्नों का सिलसिला शुरू हुआ। मैंने पूछा - माननीय आप इतनी तेज धूप के साथ अपनी यात्रा क्यों पूरी करते हैं, लोग त्राहि त्राहि कर रहे हैं? सूरज ने कहा कि मेरी धूप करोड़ों वर्षों से इतनी ही तेज रहती है। मैंने इसमें कोई बढ़ोत्तरी नहीं किया है। हमारी धूप में बढ़ोत्तरी का कारण मनुष्य है। मनुष्य ने आपके देश में अपनी जनसंख्या को बेतरतीब बढ़ाया है और अपनी आवश्यकताओं - रोटी , कपड़ा और मकान के लिए प्रकृति से खूब छेड़छाड़ कर रहा है। खेती और मकान के लिए जंगलों को काट डाला। तालाबों, झीलों और नदियों को पाट डाला। चारों तरफ कंक्रीट की इमारतें और सड़कें बनाकर पृथ्वी के अंदर जाने वाले जल को रोका। डीजल पेट्रोल से चलने वाले वाहनों की इतनी बढ़ोत्तरी की कि सड़कें कम पड़ गयीं और आसपास का वातावरण धुएं से भर गया, कोयले को इतना जलाया कि चारों ओर धुएं के बादल बन गए। कार्बन के भारी उत्सर्जन के कारण मेरे और पृथ्वी के बीच की ओजोन परत तार तार हो गयी जिसके कारण मेरी किरणें सीधे आपके देश में पहुंच रही हैं।
आपके देश की धरती का यह हाल नये नये उभरे धन्नासेठों और सरकारों की ग़लत नीतियों के कारण हुआ है। पैसे की लालच में धन्नासेठों ने जल, जंगल को नष्ट करना शुरू किया, बड़े बड़े कारखाने और माल बनाने शुरू किए और सरकारों ने मौन सहमति दी। धीरे धीरे विकास के नाम पर अंधाधुंध पेड़ काटे जाने लगे। ताल, तलैया, झील पाटकर गगनचुंबी मकान बनने लगे लेकिन लोगों ने पेड़ और जलाशय के विकल्प को गौड़ कर दिया। अब इसकी मार गरीब झेल रहा है। अमीर तो एयरकंडीशन लगा कर हमारे आतप से बच रहा है लेकिन बेघर, गरीब , मजदूर, किसान और नौकरीपेशा हमारी गर्मी से हलकान है। यदि मेरी बात आपको ग़लत लगती है तो उत्तर प्रदेश के जनपद आगरा में दयालबाग जाकर देख लीजिए। वहां के लोगों ने पेड़ के महत्व को समझा और अपने रहवास के चारों ओर खाली जमीन पर पेड़ लगाए। आज इस मई जून के महीने में भी वहां लोग पंखे और कूलर से काम चला रहे हैं जबकि वहां सभी लोग एयरकंडीशन खरीदने में समर्थ हैं।
आपके देश में धरातल पर काम कम और दिखावे के लिए ज्यादा होता है। पिछले कुछ वर्षों में आपके देश में गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड और लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में नाम दर्ज करवाने के लिए कैमरे की चकाचौंध में विभिन्न राज्यों में खूब पेड़ लगाए गए। लेकिन उस दिन के बाद कोई उन पेड़ों को देखने तक नहीं गया। जहां तक मेरी जानकारी है पिछले साल उत्तर प्रदेश में लगभग 35 करोड़ पेड़ लगाए गये थे। उनमें कितने जीवित है, यह शोध की बात है । यह बात अकेले उत्तर प्रदेश की नहीं आपके पूरे देश में यही हाल है।
सूरज ने कहा कि अब आपके मन में आपके प्रश्न के जबाब में कोई संशय नहीं रहना चाहिए। कुछ और कारण हैं जिनके कारण गर्मी बढ़ी हुई लगती है।आधुनिकता के चक्कर में आपके देश के लोगों ने अपने रहन-सहन और पहनावे में बदलाव कर लिया है। पहले गांवों में लोग कच्चे घरों में रहते थे जो ज्यादातर खपरैल और घासफूस से बनी मड़ैया होती थीं। कई परतों में होने के कारण मेरी गर्मी कोई असर नहीं डाल पाती थी। घरों के आस-पास नीम और आम के पेड़ होते थे। गांवों के चारों ओर आम , महुआ, जामुन के बड़े बड़े बाग होते थे जो गांव के वातावरण को शीतलता प्रदान करते थे। इसलिए गांवों में मेरी गर्मी का प्रकोप शहरों की अपेक्षा कम होता था। लोगों के कपड़े के पहनावे में भी बहुत बदलाव आया है। पहले लोग आपके देश में प्रदेशों के मौसम और जलवायु के अनुसार ढीले ढाले और कम रंगीन कपड़े पहनते थे। कपड़े और शरीर के बीच में अंतर होता था जिससे कपड़े द्वारा कम गर्मी अवशोषित होती थी। आजकल लोग रंगीन और कसे हुए कपड़े पहनते हैं जो जल्दी गर्मी का एहसास करा देते हैं।
विकास के नाम पर सड़कों के किनारे लगाए गये 50-60 वर्ष पुराने पेड़ों को सड़कों के चौड़ीकरण के लिए आपकी सरकार काट रही है। आपके देश की सरकारें कहती हैं कि उनका हर काम योजना के अनुसार होता है। तो इन पेड़ों को काटने से पहले बगल की जमीन पर पेड़ क्यों नहीं लगाए, यह आपके देश के लोगों के सोचने की बात है। आपके देश में प्रशासन की मिलीभगत से शाम को खड़ा हुआ पेड़ रात भर में गायब हो जाता है। जब पेड़ को काटने की सूचना कोई पुलिस को देता है तो पुलिस वन विभाग का काम बताकर टाल देती है और वन विभाग कानून व्यवस्था की बात कहकर पुलिस पर टाल देता है। बहरहाल यह काम किसका है, मैं नहीं जानता। लेकिन अलग अलग विभागों के चक्कर में पेड़ बेचारा सोते समय कटकर लकड़ी से सोना जरूर बन जाता है और सरकारी बाबू मालामाल हो रहे हैं।
यदि आपके मन में कोई प्रश्न रह गया हो तो कहिए। मैंने पूछा कि आपके बारे में लोग कह रहे हैं कि आप अमीरों से मिले हुए हैं और अपनी तेज गर्मी से गरीबों को परेशान कर रहे हैं ताकि लोग गर्मी से बचने के साधनों को ज्यादा खरीदें। सूरज ने कहा कि भाई मैं जो भी काम करता हूं पूरे पृथ्वी वासियों के लिए करता हूं। कोई देश, प्रदेश और अमीर गरीब देखकर काम नहीं करता। पूरे विश्व के लोग हमारे अपने हैं। मुझे सभी से प्यार है। धरती पर ग्लोबल वार्मिंग की समस्या मनुष्य की उपजायी हुई है और मनुष्य में उन मनुष्यों की जिनकी पैसे की भूख कम नहीं होती, बढ़ती ही जा रही है। इसके लिए आपके देश की सरकार सबसे ज्यादा जिम्मेदार है। आपके देश के शीर्ष नेतृत्व को दयालबाग जाकर सीखना चाहिए। मैं सूरज के बेबाक जबाब से हतप्रभ रह गया और अभिवादन कर सूरज से घर जाने के लिए विदा लिया।
हमें सूरज के बताए मार्ग पर चलना होगा और दिखावे वाली प्रवृत्ति छोड़नी होगी। हम भारतीयों को जब प्यास लगती है तब कुआं खोदने के बारे में सोचते हैं । ऐसी मानसिकता हमें कहीं का नहीं छोड़ेगी। हमें अपने घरों के आस-पास जमीन पर पेड़ लगाकर उनका सही तरीके से संरक्षण करना होगा अन्यथा अगले साल तापमान और आगे बढ़ेगा और हम सरकार का मुंह ताकते रहेंगे कि सरकार हमारे लिए कुछ करें।
- हरी राम यादव, अयोध्या, उत्तर प्रदेश फोन नंबर - 7087815074