जब महकते हैं गुलाब {वेलेन्टाईन डे (14 फरवरी)} - सरफराज खान

 
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utkarshexpress.com - जब फूलों का नाम आता है तो गुलाब का नाम सबसे पहले आता है। हम अपने प्रियजनों को उपहार में गुलाब के फूलों का गुलदस्ता पेश करते हैं। कई प्रेमी अपनी प्रेमिका के लिए गुलाब कहीं से भी लाने को तत्पर रहते हैं। यहां तक कि वे किसी के बगीचें में से भी चोरी से तोड़ लेते हैं और गुलाब देकर अपनी प्रेमिका को प्रसन्न करते हैं।
प्राचीनकाल से ही फूलों का रिवाज रहा है। कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है जिसे गुलाब आकर्षक नहीं लगते हों। यहां तक कि कवियों  ने अपनी कविताओं में और शायरों ने अपनी ग$जल में गुलाब की तुलना खूबसूरती से की है।
संगीतज्ञों ने संगीत में, कवियों ने अपने काव्य में, गुलाब का मनोहारी एवं सुंदर चित्रण किया है। कहीं भी अगर उदासी हो और कोई आकर गुलाब दे दे तो कितना अच्छा लगता है। कोई भी खुशी का मौका हो या कोई उत्सव हो हर जगह गुलाब के फूल अपनी महक से हवा को महका देते हैं। कोई समारोह हो या कोई सम्मेलन गुलाब हर जगह की रौनक बढ़ाते हैं।
रोम में महिलायें अपने शरीर का सौन्दर्य निखारने के लिए स्नान के पानी में गुलाब की पंखुडिय़ों को डालकर स्नान करती थीं और अपने शरीर की रंगत को निखारा करती थी। गर्म जलवायु वाले देश मिस्त्र में भी गुलाब के बगीचे फैले हुए थे जहां से गुलाब के फूल शिकारे और जहाजों से ले जाये जाते थे। रोम में यह महंगा व्यवसाय था। रोम में गुलाब का व्यवसाय कई लोगों की रोजी-रोटी बना हुआ था। सम्राट नीरो को गुलाब से बहुत अधिक प्रेम था इसलिए उसके महल में गुलाब की पंखुडिय़ां बिछी रहती थी। यहां तक कि रानी के बिस्तर और रजाइयों में कई जगह गुलाब की पंखुडिय़ां भरी रहती थीं।
अनुसंधानकर्ताओं को प्रागैतिहासिक काल की गुलाब की टहनियों, पत्तियों, कांटे, यहां तक कि गुलाब की एक कली की छाप तक मिली है। इससे यह निश्चित होता है कि आज से कई हजार वर्ष पूर्व भी इस संसार में गुलाब विद्यमान थे। गुलाब के फूल के मुकाबले में तो मानव के अस्तित्व का इतिहास अपनी शैशव अवस्था में ही है। पुरातत्व वेत्ताओं द्वारा प्राचीन एवं वेनिश संस्कृति से गुलाब के संबंध में कई तथ्य एकत्रित किए गए हैं।
इनमें सर लियोनार्ड वूली द्वारा गुलाब के संबंध में खोजी गई जानकारी सबसे पुरानी है। वूली द्वारा आर.के. शाही तोम्बा से प्राप्त दस्तावेजों के अनुसार आज से पांच हजार वर्ष पूर्व सुमेरियन राजा सारगोव प्रथम अपने सैन्य पड़ाव के दौरान गुलाब तुर्की से अपने देश में लाये थे। हजारों वर्ष पुराने चीन साम्राज्य में भी गुलाब को ऊंचा स्थान प्राप्त था। प्रसिद्घ चीनी दार्शनिक कुंग फुतेसी के अनुसार चीन के इम्पीरियल पुस्तकालय में गुलाब संबंधी छ: सौ पुस्तकें थीं। चीन में गुलाब से इत्र तैयार किया जाता था। आम आदमी गुलाब की सूखी टहनियों व पत्तियों से भरी हुई थैली को अपने शरीर पर लटकाते थे।
गुलाब से अनेक कथाएं जुड़ी है। यूनान में कहते हैं कि एक दिन जब कोरी नसयन नामक रानी जो अपूर्व सुंदरी थी, के पीछे कई प्रेमी लग गये थे, वह भाग कर पवित्रता की देवी आरेमिर्स के मंदिर में छुप गई। देवी ने उसकी काया को गुलाब के फूल में बदल दिया। एक अन्य यूनानी कथा के अनुसार प्रेम की देवी वेनिस जब एडोनिस से मिलने जा रही थी। उस वक्त उसके पैर में कांटे चुभ गये और खून बहने लगा। प्रेम की देवी के चरणों से टपकी खून की बंूदे, गुलाब बन गई और आज भी अपनी प्रेम भरी सुंदरता से समस्त विश्व को महका रही है।
गुलाब की अनेक प्रजातियां है। इनमें मंटी, जुमा, सुपर स्टार, हवा जैसे नाम वाले गुलाब, हवाई गुलाब, किरूओ कायर, लेडीहसन, किस फायर, देशी गुलाब आदि शामिल है। देशी गुलाब का गुलकंद बनाने में प्रयोग किया जाता है। इसका इस्तेमाल गुलाब जल और इत्र बनाने में भी होता है। चाचा नेहरू जिन्हें बच्चे ज्यादा ही पसंद करते थे, उनके नाम की भी गुलाब की वेरायटी है जिसे चाचा नेहरू गुलाब कहते हैं।
बारहवीं शताब्दी में गुलाब कुस्डेरस द्वारा सेन्ट्रल यूरोप व उत्तरी यूरोप में लाया गया। सोलहवीं शताब्दी तक गुलाबों के उद्यान लगाना एक फैशन सा हो चला था। वानस्पतिक शौक के लिए गुलाब की विभिन्न किस्में बगीचों में लगाई जाने लगी। इस वक्त गुलाब शोभा की वस्तु नहीं होकर उत्सुकता का संग्रह था। सन 1580 में एशिया माइनर के और कई रंग के गुलाब जैसे कि पीले गुलाब की किस्म यूरोप पहुंंची। उन दिनों यूरोप में सादगी और शांति का प्रतीक सफेद और लाल रंग का गुलाब ये दोनों बहुत प्रिय थे। सोलहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध और सत्रहवीं शताब्दी के प्रारंभ में हालैड़ यूरोप का प्रमुख गुलाब उत्पादन केन्द्र था। गुलाब के इतिहास में वर्ष 1804 एक प्रमुख वर्ष है। इस वर्ष सम्राट नेपोलियन प्रथम की रानी जासफीन को सभी रंगों के गुलाब उपलब्ध कराये गये थे। भारत में गुलाब की बागवानी काफी बाद में शुरू हुई। वैसे हिमालय में जंगल में गुलाब अपने आप ही उगते थे।
संस्कृत साहित्य में गुलाब को कलम, अति मंजुल आदि नामों से संबोधित किया गया है। मुगल काल में गुलाब का प्रचलन भारत में काफी बढ़ गया था। मुगल सम्राटों ने गुलाब के बड़े-बड़े उद्यान लगाये। नूरजहां को गुलाब से विशेष प्रेम था वह गुलाब के फूलों से भरे सरोवर में नहाने के लिए जाया करती थी। गुलाब के इत्र के बिना तो उसकी जिंदगी जैसे अधूरी सी थी। गुलाब के इत्र का नाम इत्र-ए-जहांगीर रखा गया था।
विश्व को इत्र निर्माण करना भारत ने ही सिखाया है। सत्रहवीं शताब्दी के अंत तक यूरोप में इत्र का निर्माण शुरू नहीं हुआ था। इसके बाद ही यूरोप में इत्र बनाने के प्रयास हुए और सफलता मिली। इसके बाद भी भारत के गुलाब के इत्र का अपना ही महत्व है। एक वक्त था जब कन्नौज के इत्र का विश्व भर में प्रमुख स्थान था। दिल्ली, लखनऊ व पटियाला भी इत्र उत्पादन केन्द्र है। उत्तर प्रदेश में हाथरस, आगरा, रामनगर भी प्रसिद्घ है। कई क्षेत्रों में भारी मात्रा में गुलाब की खेती की जाती है।
अलीगढ़, दिल्ली, आगरा, कानपुर, मेरठ, लखनऊ, सहारनपुर, गाजीपुर उन्नाव अजमेर के पास तीर्थ राज पुष्कर, गुलाबी नगरी जयपुर गुलाब के प्रमुख उत्पादन क्षेत्र हैं। कई क्षेत्रों में गुलाब की मांग बहुत ही अधिक हो जाती है। (विभूति फीचर्स)

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