जय हो कृष्णा रहतीं रटते (तोटक छंद) - अनिरुद्ध कुमार

 
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मनमोहन के लटके झटके,
पग पैजनिया खनके खटके।
नयना मटके सखियाँ भटके,
सब मोहित होकर के अटके।

यमुना नित जा भरतीं मटकें,
जल ले चलती चुपके कटके।
मधुसूदन आ नियरा फटके,
इच्छा बस दर्शन हो नटके।

बिन मोहन के मनवा लटके,
वह रास करें सबसे हटके।
मन झूम उठे जब आ मटके,
मन की कलियाँ गजबे चटके।

नटका नटखेल सदा मटके,
मति को हर माखन ले गटकें।
यह पावन प्रेम मिलें सटके,
वह काल लगे सबसे हटके। 

अचरा लहरे फहरे डटके,
कश्ती लगती उस भू तटके।
मन की तृष्णा कम हो घटके,
जय हो कृष्णा रहती रटते।
- अनिरुद्ध कुमार सिंह
धनबाद, झारखंड
 

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