ग़ज़ल हिंदी - जसवीर सिंह हलधर
Aug 28, 2023, 20:38 IST

मयस्सर मुझे एक ऐसा जहां है ।
जहां रोजगारी वहीं पे मकां है ।
तरक्की बहुत कर चुका ज़िंदगी में ,
मुझे गीत ग़ज़लों पे इतना गुमां है ।
तरसते हुए लोग देखे छतों को ,
न छत पास जिनके नहीं सायबां है ।
जमां भीड़ में अजनबी लोग दिखते ,
नहीं कोई अपना नहीं हमनवां है ।
दिखें रोज कटते शजर जंगलों से ,
परिंदों का लुटता हुआ आशियां है ।
चुनावी हवा में वतन जल रहा ,
लहू में सना राजनैतिक बयां है ।
हुई सुर्ख़ सड़कें फ़सादों की मारी ,
दुखी आज "हलधर" रुका कारवां है ।
- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून