ग़ज़ल हिंदी - जसवीर सिंह हलधर

 
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मयस्सर मुझे एक ऐसा जहां है ।
जहां रोजगारी वहीं पे मकां है ।

तरक्की बहुत कर चुका ज़िंदगी में ,
मुझे गीत ग़ज़लों पे इतना गुमां है ।

तरसते हुए लोग देखे छतों को ,
न छत पास जिनके नहीं सायबां है ।

जमां भीड़ में अजनबी लोग दिखते ,
नहीं कोई अपना नहीं हमनवां है ।

दिखें रोज कटते शजर जंगलों से ,
परिंदों का लुटता हुआ आशियां है ।

चुनावी हवा में वतन जल रहा ,
लहू में सना राजनैतिक बयां है ।

हुई सुर्ख़ सड़कें फ़सादों की मारी ,
दुखी आज "हलधर" रुका कारवां है ।
- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून 
 

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