अगुंजित स्वर - ज्योत्स्ना जोशी

 
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एक अगुंजित स्वर
हठीले जिद की तरह
मेरे अंतस के मौन से
 निरन्तर टकराता हुआ, 
 कि हिस्सों और किस्तों 
 में आखिर क्यों मेरा
अस्तित्व विभाजित हो
प्रश्नोत्तरी की इस दीर्घ 
श्रृंखला में अपने रिक्त को
अपेक्षित अनुकूलित 
रंगों से भरकर
मैं अपने हक के आसमान में 
सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरे होने को
तलाश रही हूँ, 
- ज्योत्स्ना जोशी, देहरादून , उत्तराखंड  

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