कविता (कलयुग) - जसवीर सिंह हलधर

 
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अंतर  मन  में बहती रहतीं  , कई  पीढ़ियों की गाथाएँ !
द्वापर से कलयुग तक जिंदा , महासमर की युद्ध कथाएँ !!

पुरखों का यह गाँव बसा जो,इंद्रप्रस्थ यानुना के तट पर ।
द्वापर का इतिहास बसा है, हस्तिनापुर के हर खँडहर पर !
द्रोपदी चीर हरण है जारी ,मौन खड़े हैं सब अधिकारी ,
अंधे युव राजों के घर में  होती अब भी मूक सभाएं !
अंतर  मन  में बहती रहतीं कई  पीढ़ियों  की गाथाएँ !!1 

वैशाली के शिलालेख पढ़ ,बोद्ध गया का परिसर देखा ।
कौशांबी की लाट गिनातीं , पिछली सदियों का सब लेखा ।
गौतम देश  देश  में  घूँमे दुनियाँ ने  उनके पग चूमे ,
अपना राष्ट्र मलीन हो गया काम न आयी मर्यादाएं !
अंतर मन में बहती रहतीं कई  पीढ़ियों  की  गाथाएँ !!2

द्वापर स्वर्ग सिंधार गया है , इंद्रप्रस्थ दिल्ली बन बैठी !
राजनीति के इस दलदल में ,दीख रही है ऐंठी ऐंठी ।
विदुर नीति भी गौण हो गयी , गीता कुरुक्षेत्र में सो गयी ,
कलयुग के  इस कोलाहल में मूक हो गयी वेद ऋचायेँ !
अंतर  मन  में बहती रहतीं  कई  पीढ़ियों  की  गाथाएँ !!3

लेखा अब बीते सालों का,भारत माता मांग रही है !
घाटी में खोये लालों की , खोजबीन में जाग रही है !
कितनी  चूड़ी  टूट  गयी  हैं कितनी  सेजें रुंठ गयी हैं ,
दिल्ली खोज नहीं पायी है,समाधान की नेक  दिशाएँ !
अंतर  मन में बहती रहतीं कई  पीढ़ियों  की  गाथाएँ !!4
 -  जसवीर सिंह हलधर, देहरादून
 

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