कविता - जसवीर सिंह हलधर

 
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मौलिकता का ढोल पीटते, मौलिक कौन हुआ है बोलो ।
मौलिक जग निर्माता है, उसको कौन छुआ है बोलो ।।

तुलसी और कबीरा पढ़कर , मैंने सीखी है कविताई ।
जिनके पद चिन्हों पर चलकर, दोहे लिखे लिखीं चौपाई ।।
मेरे अपने आराधना में ,भाव शब्द के संसाधन में ,
भूत काल के ऋषि कवियों की ,मुझको मिली दुआ है बोलो ।।1 

सत्य तथ्य की बात आपको , कविता में कैसे समझाऊं ।
समकालीन लिखा है जो भी ,क्या उसके संदर्भ गिनाऊं ।।
तुलसी हरी की कथा सुनाएं,वाल्मीकि को ही दुहराएं ,
राम कथानक से कवियों ने, अपना भरा कुआ  है बोलो ।।2

पद्मावत की बात करें तो , मलिक मुहम्मद ने लिख डाली ।
श्याम नारायण जौहर लिखकर,क्यों करते हैं भेजा खाली ।।
मुगलों का चारण मत बोलो,भूषण कवि के छंद टटोलो,
ओजस्वी भूषण की कविता , पूडी नहीं पुआ है बोलो ।।3

बात निराला की करते हैं , पूजा शक्ति कहां से आई ।
कृतिवास की रामायण से ,निकली है पूरी कविताई ।।
कुरुक्षेत्र के रेखांकन में , दिनकर के कवि लेखांकन में ,
भाव धातु है वेद व्यास की, उससे बना सुआ  है बोलो ।।4

बात करें हरिवंश राय की ,बदलेगा नजरों का चश्मा ।
मधुशाला लेखन को देखें ,किया नहीं है कोई करिश्मा ।।
मान रहे हो क्यों कविताई ,वो केवल खय्याम रूबाई ,
ज्ञान पीठ देने वाली क्या, उसकी खास बुआ है बोलो, ।।5
- जसवीर सिंह हलधर , देहरादून 
 

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