जनधारा को कृष्ण प्रेम सागर से जोड़ता हुआ "केशव कल्चर'' - दीप्ति शुक्ला

utkarshexpress.com - केशव कल्चर' केशव को अपने ह्रदय तल में विराजमान करके जनधारा को जोड़ता हुआ अग्रसर होता हुआ एक पुष्पमात्र से आज पुष्पगुच्छ बन गया है, जो मानव मन को उत्तरोत्तर कान्हा के,सखा कृष्ण के, द्वारिकाधीश कृष्ण के दर्शन कराते हुए एक से दो, दो से चार,चार से आठ ,और बढ़ते बढ़ते एक उपवन का रुप ले चुका है। इसमें कन्हैया की वंशी, रासलीला, नर्तन, गायन, उनकी मनोहारिणी आकर्षक छवि, मोरपंखी व त्रिभंगी मुद्रा , इन सबकी कुसुम लताएं यत्र तत्र बिखरी पड़ी हैं।
कुछ तो शक्ति है परमेश्वर कृष्ण की, जो सुधी पाठकों, लेखकों के अंतर्मन में अनवरत प्रवाहित हो रही है, गंगाजल सी सबके ह्रदयों को पवित्र करती हुई। निरंतर विकास करते हुए लोगों से जुड़ते जाना, जनमानस में भक्तिभाव जगाना, उनके मन का मैल मिटाना, भक्ति रस में गोता लगाना, मानसिक शांति देना,कोमल भाव जगाना, उनको कान्हा तक पहुंचना , यह सब करने हेतु 'केशव कल्चर ' प्रयत्नशील है। इसमें सहृदय पाठकों का भी सराहनीय योगदान है।उन्हीं की उत्कंठा, प्रेरणा से ऊर्जावान होकर 'केशव 'परिवार ' प्रसादम समष्टि ' आपके सम्मुख रख सका है ।
हे केशव, हमारे मन को शांति व शक्ति देते रहना। कान्हा की दी हुई शक्तियां इस पटल पर आपको पर्याप्त ऊर्जा के साथ मिलेंगी। गायन,नर्तन, वादन, काव्य कला, चित्र कला रुपी शक्तियां विभिन्न रंगों में आपके समक्ष पहुंचाने का प्रयास है। संपूर्ण समर्पण की पराकाष्ठा ही वास्तविक भक्ति है। इसी भाव को निरंतर जगाए रखने हेतु ही ' नहीं मांगती तुमसे, तुम जो चाहे दे दो ' की लालसा हुई। चंदा के रुप में प्रकृति और कान्हा की शक्ति की चाह गायन,वादन द्वारा अपने मन की तरंगों की प्रस्तुति के लिए प्रयासरत है। यही' केशव कल्चर 'का बल है। वर्तमान समय में विश्वपटल पर भौतिक, विध्वंसक नकारात्मक शक्तियों का गहन प्रभाव है। प्रकृति में ही सपनों का संसार तलाशना ,इसी के सहारे मोक्ष की ओर जाने वाले मार्ग के दर्शन भी तो हमें आध्यात्मिक बल देते हैं। यह आध्यात्मिक बल पर्व बसन्तोत्सव पर विभिन्न्क लाओ के माध्यम से और अधिक मुखरित हो उठता है।
मानव व गंगा दोनों ही प्रकृति के अंग हैं, दोनों को एक दूसरे की आवश्यकता है , किंतु हम किसी को मित्र मानकर उसका दुरुपयोग कर गलत लाभ न लें ,यह प्रयास है ' मैं गंगा ' मैया में। आकाश में लटके नन्हे (विशालकाय) तारे भी हमे कुछ कहने का बल देते हैं। वस्तुत: केशव अवतरित हुए धरा पर अपनी सोलह कलाओं के बल पर, शक्ति के साथ। तभी आततायी राक्षसों का संहार कर सके,जनता के अंतर की पीड़ा को, उथल पुथल को शांति दे पाए, मन को आल्हादित कर उदात्त भावों से हृदयों को पूरित किया, मोक्ष का मार्ग दिखाया।
विनम्र भाव से 'केशव कल्चर ' का यही मूल उद्देश्य है,सबको समेटकर,सबमें केशव की शक्ति जगाकर मन के कुत्सित विचारों, भावों को, भौतिकता के अंधी दौड़ को शनै-शनै: मन की कोठरी से दूर कर, प्रेमघट को केशव के श्री चरणों में अर्पित कर दें। - (संस्थापिका - दीप्ति शुक्ला)