कोई-कभी तो आओ - रोहित आनंद

 
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है डूब रही मेरी जीवन नैया, 
उसे उबारने कोई तो आओ।।
है छोटी सी यह दुनिया मेरी,
उसे बढ़ाने कोई तो आओ।। 
शायद मैं अब टूट रहा हूं, 
खुद में खुद से रूठ रहा हूं।।
दु:ख- सुख के उजाले तक,
साथ देने कोई तो आओ।।
लगे झूठ सभी को मेरी बातें,
पर अब साथ न देती हालातें।।
पथ भ्रांत समझते मुझे सभी, 
उसे सच बतलाने कोई तो आओ।।
मैंने कभी कुछ न बोला ज्यादा,
कभी न तोड़ी मैंने मर्यादा।।
मेरे विषय में हैं जो भी शिकवा, 
उसे झुटलाने कोई तो आओ।।
मेरे जैसे सब हैं खोए,
हम कभी न चैन से सोए।।
आंचल के तले अपनी सुलाने,
उसे सुलाने कोई तो आओ।। 
जब से आई मन में तेरी छवि, 
कहलाने लगा हूं मैं एक कवि।।
जो पीड़ा है मेरे हृदय में, 
उसे समझने कोई तो आओ।।
पूरी सृष्टि में है तुम्हारा अस्तित्व, 
सब से पावन तुम्हारा है व्यक्तित्व।।
अपना एक अनोखा सच,
उसे सामने कभी तो लाओ।।
- रोहित आनंद, डी मेहरपुर, बांका, बिहार

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