कोई ना मनमीत मिलल - अनिरुद्ध कुमार
Sat, 4 Mar 2023

जीवन के फुलवारी में,
पतझड़के संगीत मिलल।
हर दिलके आँगन सूना,
अजबे गजबे गीत मिलल।
अपना धुन में मस्त सबे,
अदला-बदली रीत मिलल।
ई दुनिया पलके मेला,
कोई कहाँ अजीत मिलल?
कल छल बल हर मानव में
सबके इहे अतीत मिलल।
बेबात डर दुबकल रहे,
हार नाहीं त जीत मिलल।
मानव मानव नित दंगल,
सबे केहू अमीत मिलल।
नियती के आगे बौना,
हरकेहू भयभीत मिलल।
लोभी, भोगी मानव तन,
धनमें लिपटल प्रीत मिलल।
बिन मतलब हल्ला गुल्ला,
नफरत डाह कुरीत मिलल।
जिनगी के माप दंड में,
हर केहू विपरीत मिलल।
औकाती दावपेंच में,
तोपल नव कुटनीति मिलल।
विचरे तारा दूर गगन,
देखीं सबे निर्भिक मिलल,
कदम बढता अब अकेलें,
कोई ना मनमीत मिलल।
- अनिरुद्ध कुमार सिंह
धनबाद, झारखंड