कुंडलिया छंद (गौरैया पर) - कर्नल प्रवीण त्रिपाठी
Mar 21, 2024, 22:58 IST
चर्चा गौरैयाँ करें, छिनी हमारी ठाँव,
खिड़की सारी बंद हैं, भले शहर या गाँव।
भले शहर या गाँव, न रोशनदान दिखें अब,
स्वतः बंद हों द्वार, घरों में भला घुसें कब।
बना एक प्रस्ताव, बोलतीं देंगी खर्चा,
खोलो पट सँग द्वार, सफल तब होगी चर्चा।
हमको भी शामिल करो, भूलो सारे बैर,
दूर न हमको तुम करो, कभी न समझो गैर।
कभी न समझो गैर, प्रकृति धरती नित बदले,
बिना जीव या जंतु, रहेगा कैसे पगले।
बदलो निज व्यवहार, सदा जीने दो सबको,
हम पंछी लाचार, करो मत बाहर हमको।
दिन-दिन गर्मी बढ़ रही, हम सब हैं बेहाल,
मानव का मुख मोड़ना, सबसे बड़ा सवाल।
सबसे बड़ा सवाल, न कोई उत्तर देता,
बड़ा विकट भृमजाल, न कोई आश्रय देता।
बिन पानी या छाँव, हो रहा भारी छिन-छिन,
हमको भी दें ठाँव, बढ़ रही गर्मी दिन-दिन।
- कर्नल प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, उत्तर प्रदेश