मजदूर दिवस की औपचारिकता - सुधीर श्रीवास्तव

 
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आज एक बार फिर
हम सब मजदूर दिवस मना रहे हैं,
क्या कहूं कैसे कहूं
कि हम मजदूर वर्ग का सम्मान कर रहे हैं
या एक बार फिर उनका अपमान कर रहे हैं
अथवा औपचारिकता वश मजदूर दिवस मना कर
उन्हें ही आइना दिखा रहे हैं,
उनके जले पर नमक छिड़क रहे हैं।
जो भी कर रहे हैं, अच्छा ही कर रहे हैं 
हम कुछ भी कर रहे
पर ईमानदारी से विचार नहीं कर रहे हैं,
मज़दूरों के महत्व को बिल्कुल नहीं समझ रहे हैं
मज़दूरों को बेबस, लाचार, असहाय समझ रहे हैं
उन्हें संपूर्ण इंसान तक नहीं समझ रहे हैं।
बड़ा अफसोस है कि हम सब
मज़दूरों को अलग अलग खांचों में 
सुविधानुसार डालकर खुश हो रहे हैं,
हम क्या कर रहे और क्या समझ रहे हैं?
मजदूर के बिना क्या एक कदम हम आप
या हमारा राष्ट्र आगे बढ़ सकता हैं?
यदि हां तो विकल्प अब तक पार्श्व में क्यों है?
और नहीं तो मजदूरों को हम हेय दृष्टि से क्यों देखते हैं?
उन्नति, प्रगति की राह में मजदूरों को
स्तंभ मान उनका मान सम्मान क्यों नहीं कर रहे हैं,
मजदूर दिवस मनाने की आवश्यकता को
हम इतना महत्वपूर्ण क्यों मान रहे हैं?
मज़दूरों की हर जरूरत यथासमय पूर्ण हो
ऐसा कोई तंत्र क्यों नहीं बना रहे हैं?
मजदूर दिवस मनाकर हम सब
अपनी पीठ थपथपा कर इतना एहसान
आखिर क्यों जता रहे हैं,
मज़दूरों के मान सम्मान स्वाभिमान को
अपने से जोड़कर क्यों नहीं देखते हैं,
और मजदूर दिवस की महज एक दिन
औपचारिकता निभा कर ढोल क्यों पीट रहे हैं। 
- सुधीर श्रीवास्तव,गोण्डा, उत्तर प्रदेश

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