लांस हवलदार दया राम, महावीर चक्र विजेता - हरी राम यादव

 
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utkarshexpress.com - विभाजन की विभीषिका में देश जल उठा था। दोनों देशों के असंख्य लोग असमय काल के गाल में समा चुके थे। यह मनुष्यों की हत्या नहीं, यह मानवता की हत्या थी। जिस तरह से बंटवारे के समय कत्लेआम हुआ वह इस सदी की विनाशकारी घटनाओं में एक थी। विभाजन की त्रासदी की आग ठंडी भी नहीं हुई थी कि पाकिस्तान के हुक्मरानों ने भारत के खिलाफ कुचक्र रचना शुरू कर दिया। उन्हें यह भली भांति पता था कि सीधे युद्ध में वह कभी भी जीत हासिल नहीं कर सकते। वे मौके की तलाश में तैयार बैठे थे, और यह मौका उन्हें सितंबर 1947 में मिल गया। जब कश्मीर के पश्चिमी हिस्से में वहाँ के नागरिकों की हत्या की गई, तब राज्य में विभाजन के दंगे भड़क गए। इसकी वजह से राज्य की जनता ने विद्रोह कर दिया और आजाद कश्मीर सरकार की घोषणा कर दी।  
इस मौके का फायदा उठाते हुए पाकिस्तान ने कश्मीर में पाकिस्तानी सेनाओं को कबाइलियो के भेष में  भेजा। पाकिस्तानी सैनिक कश्मीर के अन्दर मार काट मचाते हुए आगे बढ रहे थे। इस घुसपैठ से चिंतित होकर महाराजा हरि सिंह ने भारत से सहायता मांगी। भारत सरकार ने उन्हें भारत में विलय करने के लिए  संधि पत्र पर हस्ताक्षर करने को कहा। महाराजा हरि सिंह ने उस पर हस्ताक्षर कर दिए। भारत सरकार ने जम्मू और कश्मीर के विलय को स्वीकार कर लिया। इसके बाद भारत सरकार ने कश्मीर में भारतीय सेना को भेजा ।
पाकिस्तानी सेना ने कबाइलियों के भेष में देश पर जब  आक्रमण कर दिया, उस  समय 1 राजपूत रेजिमेंट को तेन्धार के एक क्षेत्र की सुरक्षा की जिम्मेदारी दी गयी थी। लांस हवलदार दयाराम 1 राजपूत रेजिमेंट के अग्रिम मोर्चे  के एक सेक्शन के सेक्शन कमाण्डर थे। 06 फरवरी 1948 को तेन्धार को अपने कब्जे में लेने के लिए पाकिस्तानी सेना भारी गोलीबारी कर रही थी। 1 राजपूत रेजिमेंट के इस सेक्शन पर पाकिस्तानी सेना पहले ही 05 बार हमला कर चुकी थी। इस सेक्शन के ज्यादातर जवान घायल हो चुके थे। लगातार हो रहे हमलों में लांस हवलदार दयाराम स्वयं गम्भीर रूप से घायल हो गये थे लेकिन घायल होने के वावजूद वह लगातार दुश्मन पर ग्रेनेड फेंक रहे थे। इसी बीच उनकी ब्रेन गन का नं 1 गोली लगने के कारण वीरगति को प्राप्त  हो गया।
ब्रेन गन के नं 1 के वीरगति को प्राप्त  होने के बाद वह अपने सेक्शन से दुश्मन को मार भागने के लिए घायल अवस्था में ही स्वयं ब्रेनगन सम्हाली और दुश्मन पर गोलियां बरसाने लगे। उनके कारगर फायर से काफी संख्या में पाकिस्तानी सैनिक मारे गये। इसी बीच पाकिस्तानी सेना ने जोरदार धावा बोला। ईएसआई धावे के बीच 03 पाकिस्तानी सैनिक उनकी पोस्ट के एकदम नजदीक तक आ गये। लांस हवलदार दयाराम ने जैसे ही देखा कि उनके सेक्शन के पास दुश्मन आ चुका है, उन्होंने अपनी ब्रेनगन से भीषण फायरिंग शुरू कर दिया । उनकी इस फायरिंग में दो पाकिस्तानी सैनिक ढेर हो गए।  इसी बीच तीसरे पाकिस्तानी सैनिक ने खुकरी से लांस हवलदार दयाराम को घायल कर दिया और ब्रेनगन को छीनने के प्रयास में उसकी बैरल पकड़ ली।
घायल होने के बाद भी उन्होनें ब्रेनगन पर अपनी पकड़ बनाए रखी। अपने बायें हाथ से पाउच में रखा ग्रेनेड निकाला और दांतों  से पिन को निकालकर दुश्मन पर फेंक दिया। ग्रेनेड के फटते ही दुश्मन के परखच्चे उड़ गये। लांस हवलदार दयाराम अपने साहस के बल पर अपने बाकी बचे घायल सैनिकों को बचाने में कामयाब रहे। साथ ही साथ अपने सेक्शन के हथियार को भी दुश्मन के हाथों में जाने से रोका। उनकी इस बहादुरी के लिए भारत सरकार द्वारा उन्हें 06 फरवरी 1948 को युद्धकाल के दूसरे सबसे बड़े सम्मान महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। बाद में इन्हें पदोन्नत करके हवलदार बना दिया गया । 
 केवल 08 साल की सेवा के अनुभव के बल पर लांस हवलदार दया राम ने जिस नेतृत्व क्षमता का प्रदर्शन किया और अपने सेक्शन का नेतृत्व करते हुए दुश्मन से दो दो हाथ किये, वह बहुत ही अविस्मरणीय घटना है। दुश्मन के पांच आक्रमण में इनके सेक्शन को भारी नुक़सान उठाना पड़ा था, लेकिन अपने अदम्य साहस के बल पर इन्होंने दुश्मन को मार भगाया। 
लांस हवलदार दया राम का जन्म 28 मार्च 1922 को ग्राम इस्लामाबाद कालदा में श्रीमती डालो देवी और श्री भोला नागर के यहाँ हुआ था। इनकी स्कूली शिक्षा गांधी इंटर कालेज में हुई थी। उस समय यह गाँव जनपद बुलंदशहार में आता  था लेकिन 1997 में नया जनपद गौतमबुद्ध नगर बनने के बाद  यह गाँव अब गौतमबुद्ध नगर का हिस्सा है। लांस हवलदार दया राम 01 जून 1940 को सेना की 1 राजपूत रेजिमेंट में (अब 4 गार्डस) में भर्ती हुए थे । इनका विवाह श्रीमती भोती देवी से हुआ था। इनके  दो पुत्र - श्री चरन नागर और श्री ओमकार नागर तथा एक पुत्री श्रीमती गूंजो देवी हैं।
  - हरी राम यादव, सूबेदार मेजर (आनरेरी), अयोध्या , उत्तर प्रदेश    फोन नंबर - 7087815074

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