पढ़ लेता हूँ खुद को - सुनील गुप्ता

 
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पढ़ लेता हूँ स्वयं को,
खुद से खुद अनेकों बार !
समझने की करता कोशिश....,
हूँ ढूंढता क्यूँ जाता हार !!1!!

है जिंदगी की ये किताब
समेटे सभी प्रश्नों के जवाब !
खोलकर देखूँ जब भी इसे......,
पा लेता हूँ उत्तर लाजवाब !!2!!

रोज सोने से पूर्व हमेशा
एक पन्ना पढ़कर हूँ सोता !
और करते चिंतन मनन सतत....,
ब्रह्ममुहूर्त में ही उठ जाता !!3!!

है पढ़ना स्वयं को खोजना
और खुद को बनाना बेहतर !
नित जितना गहरा इसमें उतरूँ.....,
उतना ही पाता बदलाव सुंदर !!4!!

चाहते हो खुद को गढ़ना
तो, पढ़ते चलो स्वयं को !
मिलेंगे कई एक अनगढ़ गौहर...,
जो बदल देंगे भाग्य को !!5!!

करें शुरू स्वयं से बदलाव
और तय करें जीवन लक्ष्य !
क्यूँ बैठे समय बर्बाद करें.......,
चलें हासिल करते सभी ध्येय !!6!!

स्वयं को पढ़ना है साधना
और है यही जीवन प्रेक्षाध्यान !
चलें उतरते मन अंतस में......,
और पाएं जीवन केवल्यज्ञान!!7!!
-सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान
 

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