जल प्रवाह सा बहता जाऊँ - सुनील गुप्ता

 
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 ( 1 ) जल 
प्रवाह सा बहता जाऊँ,
रहूँ सतत यहाँ पे यूँ ही चलता  !
और कभी न पथ में जाऊँ भटक...,
रहूँ सदैव बहता कल-कल मुस्कुराता !!
( 2 ) पल 
हर एक क्षण हर्षाऊँ,
चलूँ अनवरत सुमधुर प्रेम गीत सुनाता !
और प्रकृति के सामीप्य रहके सरसाए चलूँ..,
खिलूँ सदैव सुंदर फूलों की तरह हँसता !!
( 3 ) कल 
ना कभी आए समझूँ ,
क्यों करूँ कल का यहाँ पे इंतजार !
और आज अभी में मस्त रमा चला जाऊँ...,
रहूँ सदैव तत्क्षण में बना जीवंत यहाँ पर !!
( 4 ) चल 
रे मनवा गीत सुनाऊँ,
चलूँ बहता अजस्त्र निर्झर जैसे  !
और रास्ते की शिलाएं जो चाहें रोकना मुझे..,
चलूँ गढ़ता श्रीशिवलिंग आकृति सा उन्हें !!
- सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान

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