आओ नव स्वप्न सजाएँ - सुनील गुप्ता
(1)"आओ ", आओ
हो जाएं तैयार
फिर से नव स्वप्न सजाएँ !
क्यों बैठें सोचते बेकार....,
आओ, नववर्ष आया, स्वयं को जगाएँ !!
(2)"नव ", नव
अंकुरित होए जीवन
प्रतिपल रुप बदलता जाए !
स्वयं को बनाए चलें प्रसन्न.....,
आओ, हरेक पल का उत्सव मनाएँ !!
(3)"स्वप्न ", स्वप्न
देखें नित जागते
तन मन जीवन को हर्षाएँ !
चलें जीवन साथी का हाथ थामते.....,
आओ,जीवन में आनंदधन बरसाएँ !!
(4)"सजाएँ ", सजाएँ
चलें जीवनबेला को
बन जीवंत सबको सरसाएँ !
आज अभी इस क्षण-पल को......,
आओ,रचाए चलें ख़ूब मुस्कुराएँ !!
(5)"आओ नव स्वप्न सजाएँ ",
करते चलें स्वयं से ये प्रण !
कि,इस मन धरा को चलेंगे खिलाए....,
और भरते चलेंगे परवाज़ हरेक क्षण !!
सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान