जाने चले जाते हैं कहाँ - सविता सिंह

 
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मुड़-मुड़ देख रहा था पुत्र 
राख हुए जन्मदाता को 
अश्रुपूरित नैनो से वो 
दे रहा अंतिम विदाई 
निज हाथों से चिता जला 
अपनी कर्तव्य निभाई।
यह क्षण बड़ा ह्रदय विदारक 
भाव रखे कैसे दबाकर 
ढक कर से चेहरे को 
फूट पड़ा फफक फफक कर|
श्रांत नीरव मन, शोणित अनल 
पिता की चिता रही थी जल 
गिरा भस्म हुए चिता पर 
यादों की परिधि से निकल।
तभी किसी ने दी आवाज 
देख कुछ तो नहीं गया रह 
मुट्ठी में राख भींच वो 
बुदबुदाया सब गया ढह
अर्पित वह अस्थि कलश भी 
गंगाजल में गया था बह 
गंगाजल में गया था बह|
- सविता सिंह मीरा, जमशेदपुर

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