जीवन और गुलाब - कर्नल प्रवीण त्रिपाठी

 
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फुलवारी में नित गुलाब ज्यों, कुसुमित होते रहते हैं।
मन-आँगन की सुंदर बगिया, सदा सुवासित करते हैं।

भिन्न रूप हो रंग भिन्न हो, कोई फर्क नहीं पड़ता।
कहाँ खिले हैं कहाँ सजे हैं, महक नहीं फिर भी तजता।
शतपत्रों से यही सीख लें, निज स्वभाव को मत बदलें।
इन फूलों से रंग चुरा कुछ, अब जीवन को रंगते हैं। 
फुलवारी में नित गुलाब...
काँटों के सँग कैसे रहना, निज पहचान बिना खोये ।
सुरभित रखना हरदम तनमन, उत्तम भाव हृदय बोये। 
बिन कुम्हलाये बन मुरझाये, वह प्रसून बन कर रहना।
संस्कारों से सदा सुवासित, पुष्प गुच्छ से सजते हैं। 
फुलवारी में नित गुलाब...
झंझावातों में भी फँस कर, अडिग रहे नित बिना झुके।
पारदर्शिता हो जीवन में, दुर्गुण मन में नहीं छुपे। 
दामन से काँटें चुन-चुन कर, जीवन निष्कंटक करना।
पूरे कर लें सारे सपने, जो नयनों में पलते हैं।
फुलवारी में नित गुलाब ...
सुंदर कुसुमों से यह जीवन, ऐसे सुरभित करते हैं। 
फुलवारी में नित गुलाब ज्यों, कुसुमित होते रहते हैं।
- कर्नल प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, उत्तराखंड 
 

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