ढ़ूंढ़ता रहा हूँ - अनिरुद्ध कुमार
Thu, 11 May 2023

दर्द अपना बता रहा हूँ,
हाल दिल का जता रहा हूँ।
क्या किसी पे करें भरोसा,
सब समय सोंचता रहा हूँ।
बोल कैसे करें मुहब्बत,
बस अदा देखता रहा हूँ।
जख्म देता रहा जमाना,
हर दफा रोकता रहा हूँ।
जिंदगी की अदा निराली,
तोड़ दिल को सता रहा हूँ।
डगर लम्बी चला अकेला,
हर जगह पूछता रहा हूँ।
चैन से'अनि' रहें जहाँ में,
रास्ता ढ़ूंढ़ता रहा हूँ।
- अनिरुद्ध कुमार सिंह
धनबाद, झारखंड