ढ़ूंढ़े नजर - अनिरुद्ध कुमार
Tue, 3 Jan 2023

भूल बैठें जिंदगी जा रहें जाने किधर,
हो न पायें रूबरू दूर तक ढ़ूंढ़े नज़र।
खो गया मेरा जहाँ हो गये हम दरबदर,
जिस्म सारा दाव पे बोल हो कैसे बसर।
हर तरफ तनहाइयाँ धूंध की चादर तनी,
क्या कहें किससे कहें हर घड़ी उट्ठे लहर।
भूलना मुस्किल लगे बोलती परछाइयां,
आसियाना लुट गया कौन दे दिल में सबर।
दर्द से लबरेज़ हो उठरहा है जलजला,
आँख से मोती झरे उड़ गई जाने जिगर।
बंधनों को तोड़के शान से मुख मोड़के,
बेसहारा छोड़ के चल पड़ी शाने सफर।
'अनि' तरसता प्यार में भूल पाना है कठिन,
आँसुओं का मोल क्या ये घड़ी लागे जहर।
- अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड