फिल्मी जगत के आसमान के तारे गीतकार शैलेन्द्र - सुशील गिरधर 'शीलू'
utkarshexpress.com - आवारा हूं या गर्दिश में हूं आसमान का तारा हूं ... (आवारा) है सबसे मधुर वो गीत... (पतिता) नन्हें-मुन्ने बच्चे तेरी मुट्ठी में क्या है... (बूटपॉलिश), तू प्यार का सागर हैं... (सीमा), मेरा जूता है जापानी... (श्री 420), जहां मैं जाती हूं, वहीं चले आते हो... (चोरी-चोरी), सुहाना सफर और ये मौसम हसीं... (मधुमती), ये मेरा दीवानापन है... (यहूदी), सजन रे झूठ मत बोलो... (तीसरी कसम) जैसे मन को झंकृत कर देने वाले करीब 800 गीतों को अपने शब्दों में ढालने वाले अमर गीतकार शैलेन्द्र आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके लिखे हुए गीत सदियों तक उनकी अमरता का अहसास कराते रहेंगे। शैलेन्द्र ने चाहे गजल हो या कव्वाली, प्यार-मोहब्बत की इंतहा हो या भक्ति गीत का भगवान, प्रणय गीत का उन्माद हो या क्रांति को सुलगती हुई ज्वाला, तार हुए दिल की कैफियत हो या बुझे हुए दिल की फरियाद, हर मौके के लिए गीत लिखकर संगीत के क्षेत्र में अपना एक अलग मुकाम बनाया। शैलेन्द्र का पूरा नाम शंकर सिंह शैलेन्द्र था। इनका जन्म 30 अगस्त, 1923 को हुआ। इनके पिता का नाम श्री केसरीलाल व माता का नाम श्रीमती पार्वती देवी था।
26 वर्ष की आयु में, सन् 1949 में इनके फिल्मी जीवन को प्रसिद्धि मिली, जब उनकी पहली फिल्म 'बरसात' रिलीज हुई, जिसमें इनके लिखे गीत 'बरसात में हम से मिले तुम..., ने काफी लोकप्रियता पाई। इसके बाद आने वाली फिल्म 'आवारा' ने इन्हें इनकी मंजिल दिखा दी। उसके बाद तो उन्होंने करीब हर संगीतकार के साथ काम किया।
शैलेन्द्र ने संगीतकार शंकर जयकिशन के लिए बरसात, आवारा,बादल, आह,पतिता,बूटपॉलिश,सीमा,श्री 420 व अन्य कई फिल्मों के लिए गीत लिखे। इसके अतिरिक्त सलिल चौधरी के लिए दो बीघा जमीन, से लेकर पिंजरे के पक्षी तक कई गीत लिखे। हमने जफा न सीखी.. याद न जाए बीते दिनों की..., आजकल तेरे मेरे प्यार के चर्चे..., गाता रहे मेरा दिल.., आदि गीतों में उनकी बहुकोणीय प्रतिभा झलकती है। उन्होंने सचिन देव बर्मन, रोशन, हेमंत कुमार, सी. रामचन्द्र, श्रीनाथ त्रिपाठी, चित्रगुप्त, किशोरकुमार, दत्ता राम व रवि के संगीत से सजे हजारों नगमें लिखे, जिन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता।
संगीतकारों के अतिरिक्त उस समय का शायद ही कोई अभिनेता हो जिस पर उनका लिखा गीत न फिल्माया गया हो। शैलेन्द्र की प्रतिभा जितनी बहुआयामी थी, उतना ही सहज व सरल था उनका व्यावहारिक पक्ष। उन्होंने पुराने व स्थापित संगीतकारों के अतिरिक्त नए संगीतकारों के लिए भी गीत लिखे।
शैलेन्द्र ने अपने केरियर के प्रारंभ में कुछ फिल्मों में अभिनय भी किया, जिनमें नया घर, बूटपॉलिश,श्री 420 और मुसाफिर भी शामिल हैं। उन्होंने तीसरी कसम फिल्म का निर्माण भी किया, वहीं दूसरी ओर 1960 में बनी फिल्म परख के लिए उन्होंने संवाद भी लिखे। यहां तक कि फिल्म पूजा में उन्होंने अपनी आवाज में एक गीत भी गाया, जिसके बोल थे 'चल-चल रे मुसाफिर लेकिन बाद में अपने व्यक्तित्व की समूची अभिव्यक्ति अपने गीतों के माध्यम से ही की।
वे एक तरफ तो 'जोशे जवानी.. हाय कहते हुए ऊधमी गीत लिखते हैं तो दूसरी ओर 'ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आना... में दर्द झलकता है। कही भक्ति की अद्धैत वाणी 'अल्ला-अल्ला बंदे बदंगी..को शब्द देते हैं तो कहीं 'आजकल तेरे मेरे प्यार के चर्चे.. लिखकर अपराजेय इश्क की घोषणा करते हैं।
बरसात से लेकर मेरा नाम जोकर तक राजकपूर द्वारा निर्मित लगभग सभी फिल्मों के थीम सांग शैलेन्द्र ने लिखे थे। शैलेन्द्र हमेशा धुन पर गीत लिखते थे। संगीतकार पहले धुन बनाकर उन्हें सुनाते थे, तब वे लिखते थे। वास्तव में यह बहुत कठिन कार्य है, पर उन्होंने इसमें कभी कठिनाई अनुभव नहीं की। सरलता, सही शब्दों का चयन और दिल को छू लेने वाले गीत शैलेन्द्र के लेखन की खासियत थी।
उन्हें तीन बार सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फिल्मफेयर पुरस्कार दिया गया- 'यहूदी (ये मेरा दीवानापन...), अनाड़ी (सब कुछ सीखा हमने..), 'ब्रह्मचारी (मैं गाऊं तुम सो जाओ...)के लिए दिया गया। फिल्म तीसरी कसम के निर्माण के लिए उन्हें राष्ट्रपति के स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया। बंगाल फिल्म जर्नलिस्ट एसोसिएशन की ओर से तीसरी कसम के लिए शैलेन्द्र 11 पुरस्कारों से सम्मानित किए गए, लेकिन तहेदिल से शैलेन्द्र ने जिस सम्मान को स्वीकारा था, वह था उन्हें चाहने वालों का प्यार रूपी सम्मान।
फिल्मी गीत और संगीत का यह अनाड़ी ,आवारा महानायक 43 वर्ष की अवस्था में 14 दिसम्बर, 1966 को हमें सदा के लिए छोड़कर चला गया। शैलेन्द्र के निधन को संगीत जगत की अपूरणनीय क्षति बताते हुए किसी शायर ने कहा था-
'कहता है कोई दिल गया,
दिलवर चला गया।
साहिल पुकारता है,
समन्दर चला गया॥
लेकिन जो बात सच है,
वो कहता नहीं कोई।
दुनिया से मौसिकी का,
पयम्बर चला गया॥' (विनायक फीचर्स)