गीत - जसवीर सिंह हलधर

 
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दूर कर रहा हमें प्रकृति से, नकली नगर विकास ।
कंक्रीट पिंजरे में मानस, धरती ना आकाश ।।

नहीं ताजगी दिखे सुबह को, नही ताजगी शाम ।
नकली दूब दिखाई देती, गमले में है आम ।
धूल धुंध से करे लड़ाई प्राण वायु का नाश ।।
कंक्रीट पिंजरे में मानस धरती  ना आकाश ।।1

जीवन कठिन समस्या लागे, देख सड़क वर्ताव ।
घंटों जाम फसे रहना भी, देता बहुत तनाव ।
दुर्घटना का खतरा हर दिन, मौत घूमती पास ।।
कंक्रीट पिंजरे में मानस धरती ना आकाश ।।2

शाम ढली कब रात हो गयी, कब हो गयी प्रभात ।
वाहन शोर मचाते रहते, देखें ना दिन रात ।
आदम कीट पतंगा लगता, चलती फिरती लाश ।।
कंक्रीट पिंजरे में मानस धरती ना आकाश ।।3

बीस लाख की गाड़ी लेकर, फिरता मोटू सेठ ।
झूँठ बोलना माल कमाना, सावन हो या जेठ ।
अनपढ़ नेताजी के घर में "हलधर"काटे घास ।।
कंक्रीट पंजरे में मानस धरती ना आकाश ।।4
- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून  
 

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