गीत - जसवीर सिंह हलधर

 
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बर्फ पिघल अब अनल हुई है ,घर्षण है पत्थर पत्थर में ।
चिंगारी उठती रोजाना ,चट्टानों की इस टक्कर में ।।

लोहे के रथ भारत माँ के, परिक्रमा पर निकल रहे हैं ।
सिंहों के टोले पर्वत पर ,दुश्मन वध को मचल रहे हैं ।
शांत पवन से टकराती हैं, उठ कर कांटेदार हवाएं ,
आसमान में बाज़ उड़े हैं ,लाद लाद बारूद कमर में ।।
बर्फ पिघल अब अनल हुई है ,घर्षण है पत्थर पत्थर में ।।1

अब की बार युद्ध होगा तो ,कीमत बहुत चुकानी होगी ।
काट काट चीनी चूहों को , नदिया खून बहानी होगी ।
धरती पर भी कंपन होंगे ,सागर की लहरें कापेंगी ,
प्रक्षेपात्र भिड़ेंगे नभ में ,अगनी बरसेगी घर घर में ।।
बर्फ पिघल अब अनल हुई है,घर्षण है पत्थर पत्थर में ।।2

धर्म ध्वजा के हम वाहक हैं , बुद्ध दिया दुनिया को हमने।
सतयुग से द्वापर कलयुग तक , शुद्ध किया दुनिया को हमने।
एक इंच भू ना छोड़ेंगे , तोपों का रुख अब मोड़ेंगे ,
लड़ने को तैयार खड़े हैं बूढ़े बच्चे आज समर में ।।
बर्फ पिघल अब अनल हुई है , घर्षण है पत्थर पत्थर में ।।3

थोथे अस्वासन के बल पर , और नहीं धोखा खाना है ।
कांच घरों से बाहर निकलो , चट्टानों से टकराना है ।
संशोधन इतिहास मांगता ,बासठ वाली उस गलती पर ,
घूम रही रण चंडी "हलधर", नगपति के पूरे परिसर में ।।
बर्फ पिघल अब अनल हुई है ,घर्षण है पत्थर पत्थर में ।।4
- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून  
 

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