गीत - जसवीर सिंह हलधर
मैं सेना का एक सिपाही , तू मंत्री की बेटी प्यारी ।
हो भी गया लगन तो बतला ,क्या अनुबंध निभा पाएगी ।।
मैं उस सरहद का वासी हूँ ,मौत रोज देती है न्योता ।
बापू भी घाटी ने सटका , दादा का इकलौता पोता ।
जीवन कोई खेल नहीं है ,हम दोनों का मेल नहीं है ,
हो भी गया मिलन तो बतला,क्या संबंध निभा पाएगी ।।
मेरी वर्दी हरे रंग की ,जिसमें बसते हैं अंगारे ।
तू पहने परिधान विदेशी ,जड़े हुए हैं चाँद सितारे ।
मेरी रात आग औ पानी ,तू है कैफे की दीवानी ,
दे भी दिया वचन मैने तो ,क्या सौगंध निभा पाएगी ।।
मेरा जन्म देश की खातिर ,काम सदा करना रखवाली ।
मंत्री जी का कोष भरा है , भले देश में हो कंगाली ।
मैं नगपति का ख़ास पुजारी ,तू सागर की राजदुलारी ,
कर भी दिया हवन हमने तो, क्या प्रतिबंध निभा पाएगी ।।
इतनी दानी नही जिंदगी ,हर भूखे को रोटी दे दे ।
कोई मंत्री नहीं देश में ,जो सैनिक को बेटी दे दे ।
मेरा जीवन सरल नहीं है ,ठोस शिला है तरल नहीं है ,
कर भी लिया जतन हमने तो ,क्या उपबंध निभा पाएगी ।।
- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून